Saturday, October 3, 2009

हे हवा के झोको

हे हवा के झोको
तुमको क्या दूँ संबोधन
कभी यहाँ कभी वहा
कभी अवांछित जगहों से
आते हो
जीवन को प्रफूलित व् कभी निराश करते हो
आते हो जीवन को झंझोर देती है
जाते हो जीवन में में सुखद व् दुखद विराम देती हो
विराम के पीछे आशा व् निराशा होती है
जो जीवन में उठान व् पतन करती हो
लेकिन विराम नए विराम को जन्म देती हो
हे हवा के झोकों क्या तुम्हारा यही कारन उतपत्ति का
नही नही नही यह तो एक रूप झोकों का
याद करो उन झोकों को जिससे जीवन भर प्रफूलित रहते हो
देते हो जीवन को जीने का उदेश
क्या है तुम्हारी उत्पति का कारन
क्या कोई जनता इसे
तुम ना होते तो क्या होता
जीवन ऐक निराशापूर्ण होता
कैशे करू तुम्हारा धन्वाद
में तो कर्र्ण हूँ हवा में विचरण करता हूँ
सुख और दुःख रुपी झोकों में झूलता हूँ
मंजिल की और आग्र्सर रहता हूँ
नए कर्र्र्ण को जनम देता हूँ
डोलने को मजबूर कर देता हूँ
बना रहे तेरा आभार
यही है मानुष का सार
मालूम है डोलना मजबूरी है
लेकिन नए कर्र्ण को जनम देना उस्शे बरी मजबूरी है
न कोई बदल पाया है न बदल पायेगा
जीवन में डोलता रह जाएगा

हे हवा के झोकों धन्याद धन्याद । । ।

Friday, October 2, 2009

life as a stranger

I met my life
like a stranger meet another
the way you make me feel.
was another way to tell my heart
thats there are still people in this world
To gave life a fresh new fresh start
refusing love was such a easy game for you
you faked all along but why it feel so true
some people say heart is not just
on of organ
its a home where love reside inside
human
so where my love gone inside your
body
or its the same for every body.
I know its all over we cant be together again
we would meet like two stranger meet again
I met my life
like a stranger meet another